पिंजरे में कैद एक पँछी
#पिंजरे_में_कैद_पँछी
(1)
पिंजरे में कैद था एक पँछी
🐦जिसकी व्यथा मैं सुनाता हूँ
🦜🦜भूल गया था उड़ना वो तो
🐦🐦🐦उसकी गाथा मैं सुनाता हूँ ।।
(2)
पिंजरे से आकर बाहर
🐦आसमान को छूना चाहता हूँ
🦜🦜स्वतंत्र रूप से पंख फैलाकर
🐦🐦🐦मैं भी उड़ना आज चाहता हूँ ।।
(3)
कैद में रखते हो हमे
🐦क्या मैं शोभा घर का बढ़ाता हूँ
🦜🦜खुली वादियों में जीने दो हमे
🐦🐦🐦उस पिंजरे में जाते डर जाता हूँ ।।
(4)
बेजुबां साँ हूँ मैं एक परिंदा
🐦चु-चु-कर बात बताता हूँ
🦜🦜पिंजरे में कैद होकर मैं
🐦🐦🐦दुख से भरे दिन-रात बिताता हूँ ।।
(5)
सुबह ―सुबह खुले आसमाँ
🐦में मैं गीत बड़ा मधुर ही गाता हूँ
🦜🦜हे मानव ना कर पिंजरे में कैद
🐦🐦🐦रहकर उसमे जीते जी मर जाता हूँ ।।
(6)
फल फूल पत्ते कीट पतंगा
🐦और खुली समर खाता हूं
🦜🦜इन खुली वादियों से रहकर ही
🐦🐦🐦मैं प्रेम का मधुर धुन गुनगुना पाता हूं ।।
(7)
खुले आसमाँ में पर (पँख)
🐦फैलाकर उड़ना मैं तो चाहता हूँ
🦜🦜ये मानव पर कुतर देते है मेरे ,
🐦🐦🐦चाह–कर फिर भी उड़ नही पाता हूँ ।।
(8)
हूं मैं ना समझ थोड़ा तभी
🐦शिकारी के जाल में फस जाता हूँ
🦜🦜हे मानव समझ मेरी व्यथा जरा
🐦🐦🐦मैं कैद में रहकर हँस भी नही पाता हूँ ।।
(9)
हे मानव खोल दो ये पिंजरा
🐦उड़ा दो हमे उस खुले आसमाँ पर
🦜🦜जीने दो हमे भी खुलकर
🐦🐦🐦आजादी से सांस लेना जीना चाहता हूँ ।।
(10)
छोटे– मोटे सपने तो रोज मैं
🐦नए –नए सजाते बुनते देखते जाता हूँ
🦜🦜लेकिन उस पिंजरे में कैद रहकर मैं
बड़े दर्द तकलीफ से भरे दिन-रात मैं बिताता हूँ ।।
(11)
हे मानव तुम भी थोड़ी मेरी व्यथा
🐦पीड़ा को समझो मैं बेजुबां हूँ पर
🦜🦜सुबह सुबह चु-चु कर तुम्हे उठाता हूँ
🐦🐦🐦मैं एक परिंदा हूँ जो गीत ही गुनगुनाता हूँ ।।
🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜🐦🦜
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला - महासमुन्द (छःग)
Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 09:24 PM
बहुत खूबसूरत
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Swati chourasia
02-Feb-2022 03:49 PM
Awesome 👌👌
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